निम्नलिखित के आशय स्पष्ट कीजिए-

मिट्टी और धूल में अंतर है, लेकिन उतना ही, जितना शब्द और रस में, देह और प्राण में, चाँद और चाँदनी में।

लेखक सर्वेश्वर दयाल सक्सेना ने प्रस्तुत पंक्तियों में मिट्टी और धूल में अंतर को बङे ही तुलनात्मक अंदाज में हमें बताया है। यह अंतर हम वास्तव में मिट्टी और इसकी आभा धूल के रुप में पाते हैं। धूल वास्तव में मिट्टी की ही चमक है। लेखक इसकी तुलना शब्द में बसे रस से करता है। वस इसकी तुलना देह में बसे प्राण से भी करता है। यहां तक कि लेखक मिट्टी और इसमें बसे धूल की तुलना चांद में बसी चांदनी से भी करता है। इस प्रकार लेखक हमें मिट्टी और धूल में अंतर को बङे ही रोचक अंदाज में बताता है।


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